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लेखनी कहानी -13-Dec-2022 दागो और भागो

बड़ा गजब का खेल है जी । आजकल बहुत प्रचलित हो रहा है । किसने ईजाद किया था, सब जानते हैं । हर कोई नहीं खेलता है इस खेल को । कुछ खास लोग ही खेल पाते हैं इसे । इसके लिए बहुत उच्च कोटि की बेशर्मी चाहिए । छोटी मोटी बेशर्मी वाले खिलाड़ी तो फुनगे की तरह उड़ जाते हैं । इसे खेलने के लिए पहले क्वालिफाइंग राउण्ड होता है । इस क्वालिफाइंग राउण्ड को लोग "धूर्तता" के नाम से जानते हैं । इसमें जो पास होता है वह अगले राउण्ड "मक्कारी" के लिए क्वालिफाई कर पाता है । इस राउण्ड में भी बहुत कड़ा मुकाबला होता है । एक से बढकर एक मक्कारों में से क्वालिफाई करना कोई आसान काम है क्या ? 

यह खेल "शूटिंग" की तरह खेला जाता है । निशाने पर कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है । प्रतिष्ठित व्यक्ति पर निशाना साधने का परिणाम यह होता है कि आप तुरंत लाइमलाइट में आ जाते हैं । मीडिया तो इसी फिराक में रहता है कि कब यह खेल शुरू हो और कब इस पर घंटों भड़काऊ बहस कराई जाये, गाली गलौज कराकर टी आर पी कमा ली जाये । शायद टी आर पी के लिए गंदगी में लोटना मजबूरी हो गयी है मीडिया की क्योंकि सकारात्मक खबरों से टी आर पी नहीं मिलती है । पर जो भी हो, मीडिया के अपने खुद के नियम हैं । वहां किसी सरकार की कोई दरकार नहीं है । मीडिया तो सरकार से ऊपर है । 

इस खेल को खेलने के लिए एक बंदूक की जरूरत होती है । यहां पर "जुबान" को बंदूक के रूप में काम में लिया जाता है । गोली के रूप में "आरोप" दागे जाते हैं । निशाना इतना सटीक होता है कि सामने वाले के चेहरे पर कालिख पुत जाती है । कपड़े मैले कुचैले हो जाते हैं । कभी कभी तो कपड़े इतने फट जाते हैं कि बदन दिखने लगता है । बस, इसी में तो मजा आता है खिलाड़ी को । सामने वाले को नंगा करना ही तो मकसद था उसका । उसकी खुद की तो कोई इज्जत है नहीं इसलिए सामने वाले से दो दो हाथ करने के लिए उसे समान धरातल पर तो लाना ही पड़ेगा । फिर वह  गोली दागकर भाग छूटता है पर मीडिया उस गोली का सालों साल पोस्टमार्टम करता रहता है । 

इस खेल के खिलाड़ी बड़े कायर किस्म के होते हैं । मैदान छोड़कर भागने वालों को कायर ही कहते हैं न ? इन्हें पता है कि वे दौड़ लगाने में चैंपियन हैं और इन्हें कोई पकड़ नहीं सकता है । जिसके चेहरे पर कालिख पोती गई थी वह बेचारा कालिख साफ करने में ही लगा रहता है । पर कालिख का भी एक सिद्धांत है कि वह जब एक बार कहीं बैठ जाती है तब वह कभी उस जगह को छोड़कर पूरी तरह से जाती नहीं है, अवशेष तो छोड़ती ही है । 

जैसे तैसे वह पीड़ित व्यक्ति संभलता है और वह "न्याय के देवता" से शिकायत करता है तो न्याय का देवता बहुत खुश होता है । ऐसे खेलों से न्याय के देवता की "पूछ" और ज्यादा हो जाती है । तब न्याय का देवता खुद को भगवान से भी बड़ा समझने लगता है । 

"दागो और भागो" खेल का खिलाड़ी जानता है कि उसका कुछ बिगड़ने वाला नहीं है बल्कि वह रातों-रात सुपर हीरो बन जाता है । ऐसे लोगों को सुपर हीरो बनाने की "सुपारी" मीडिया ने ले ली है । पैसे को माई बाप मानने वालों का कोई दीन ईमान होता है क्या ? पैसे के लिए तो ये मीडिया वाले पाकिस्तान और चीन के गीत भी गाते देखे गये हैं यहां । 

कालिख पोतने का अंजाम क्या होगा ? कुछ नहीं । अब तक क्या हुआ है जो अब आगे होगा ? पहली बात तो यह है कि इस देश में "न्याय" प्रक्रिया इतनी लंबी और खर्चीली है कि यह आम आदमी को हतोत्साहित और अपराधी, मंझे हुए खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करती है । तारीख पे तारीख भुगतते भुगतते पीढियां खत्म जाती हैं पर "न्याय" की रोशनी कभी आती नहीं हैं । न्याय के देवता को न्याय करने में कोई रुचि नहीं है क्योंकि वह व्यस्त है "शासन" की बागडोर हथियाने में । बेचारा न्याय का देवता "शासन" चलाने में इतना व्यस्त है कि उसे न्याय जैसी तुच्छ वस्तु पर ध्यान देने को समय ही नहीं मिलता है । फिर "मंदिर" का एक सिद्धांत है कि जो जितना ज्यादा प्रसाद चढायेगा वह उतना ही अधिक कृपा पायेगा । इस तरह आम आदमी न्याय के मंदिर में पहुंच ही नहीं पाते हैं मगर खास आदमी मनमाफिक "कृपा" पाकर धन्य हो जाते हैं । 

न्याय के देवता का सिद्धांत बहुत स्पष्ट है । हमारे शास्त्रों में "क्षमा" को सबसे बड़ा दंड बताया गया है इसलिए न्याय का देवता आजकल सबको "क्षमा" करने पर तुला हुआ है । एक पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों को क्षमा कर दिया गया । एक नाबालिग बच्ची के बलात्कारी और हत्यारे को भी यह कहकर क्षमादान दे दिया कि एक अपराधी का भी कोई भविष्य होता है । न्याय के देवता को पीड़िता बच्चियों के भविष्य से ज्यादा अपराधियों के भविष्य की चिंता है । यह बात इस खेल के खिलाड़ी बहुत अच्छी तरह से जानते हैं । वे सोचते हैं कि जब न्याय का देवता आतंकी , नक्सली, देशद्रोही, हत्यारे, बलात्कारी सबको छोड़ रहा है तो उसका अपराध ही क्या है ? उसने तो केवल जुबानी बंदूक ही तो चलाई है और आरोप रूपी गोली ही तो छोड़ी है , और किया क्या है ? अब क्या कोई खेल भी नहीं खेले ? 

चलो मान लिया कि उसने किसी पर कालिख पोत दी तो क्या हुआ , जब जरूरत पड़ेगी तो माफी मांग लेगा । इस खेल का सिद्धांत ही यही है कि कालिख तो सार्वजनिक रूप से पोतो और माफी किसी बंद कमरे में मांग लो । न्याय का देवता क्या कहेगा ? यही न कि उसने माफी तो मांग ली है अब क्या बच्चे की जान लेगा ? और वह फरियादी को भगा देगा । इस खेल का शातिर खिलाड़ी बड़ा बेशर्म है । वह फिर से बंदूक दागेगा, फिर से किसी पर कालिख पोतेगा और फिर से बंद कमरे में माफी मांग लेगा । इस तरह यह खेल अनवरत चलता रहेगा । जनता भी मजे ले रही है । मीडिया धनवान हो रही है और न्याय का देवता ? उसकी तो दसों उंगली घी में और सिर कड़ाही में है । 

श्री हरि 
13.12.22 


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4 Comments

Sachin dev

13-Dec-2022 04:35 PM

Well done

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Hari Shanker Goyal "Hari"

13-Dec-2022 05:16 PM

🙏🙏

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Renu

13-Dec-2022 11:05 AM

👍👍

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Hari Shanker Goyal "Hari"

13-Dec-2022 05:16 PM

🙏🙏

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